Information

Hier werden Nachrichten über den Salafismus veröffentlicht.
Was sind Salafisten?
Hier anschauen:
http://www.youtube.com/watch?v=l5HRdwsck10
(Alle Angaben ohne Gewähr)
Diese Seite richtet sich nicht gegen Muslime und den Islam.
Diese Seite soll über den Salafismus/Islamismus/Terrorismus informieren.
Es ist wichtig über Fanatiker aufzuklären, um den Frieden und die Freiheit zu sichern.
Wir wollen in Europa mit allen Menschen friedlich zusammen leben,
egal welche Herkunft, Nationalität und Religion.


::: DOKUS :::
(Achtung: Youtube ist überschwemmt mit Videos, die salafistischen/islamistischen Einfluss besitzen.
Deshalb: Schaut euch die Accounts genau an!)

1.
[DOKU] Wie Salafisten zum Terror verleiten - 2013
https://www.youtube.com/watch?v=uM2x-vgdrKM

2.
Pulverfass Deutschland - Doku über Probleme zwischen Salafisten und Rechtsradikalen
https://www.youtube.com/watch?v=H5nOuzXJOmY

3.
Salafisten, ein finsterer Verein (heute-show)
https://www.youtube.com/watch?v=Myq48smApKs

4.
Deutsche Salafisten drangsalieren weltliche Hilfsorganisationen in Syrien | REPORT MAINZ
https://www.youtube.com/watch?v=lCext-9pu9I

5.
DIE SALAFISTEN KOMMEN
https://www.youtube.com/watch?v=uWARKJSKOP4

6.
Best of 2013 Peter Scholl Latour EZP Salafisten wird durch Saudisches Geld verbreitet!!!
https://www.youtube.com/watch?v=FmV3Z6f1BQQ

7.
Frauen im Islam
https://www.youtube.com/watch?v=mb4G6tUbkD0


8.
Gülen Bewegung
http://de.wikipedia.org/wiki/Fethullah_G%C3%BClen#Deutschland
Gefahr für Deutschland - Gülen Bewegung versucht die Unterwanderung
http://www.youtube.com/watch?v=E9Q1jS7Rw9M

9.
Islamisten oder Demokraten - Die Islamische Milli Görüs / Millî Görüş / Milli Görüş
http://www.youtube.com/watch?v=EtWjumM5G88

10.
Die türkischen Graue Wölfe (Rechtsextremismus/Islamismus)
http://www.youtube.com/watch?v=_Z9LEc4qM1I

11.
Föderation der Türkisch-Demokratischen Idealistenvereine in Deutschland
(türkisch Almanya Demokratik Ülkücü Türk Dernekleri Federasyonu, ADÜTDF; kurz auch Türk Federasyon, dt. „Türkische Föderation“)
http://de.wikipedia.org/wiki/F%C3%B6deration_der_T%C3%BCrkisch-Demokratischen_Idealistenvereine_in_Deutschland



http://de.wikipedia.org/wiki/Salafismus
http://de.wikipedia.org/wiki/Islamismus
http://de.wikipedia.org/wiki/Mill%C3%AE_G%C3%B6r%C3%BC%C5%9F

http://boxvogel.blogspot.de

::: DOKUS ENDE :::


http://salafisten-salafismus.blogspot.com
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    टोना-टोटका और इस्लामी नुक़्त-ए-नज़र ۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩۩ इस्लाम धर्म ह़क़ायक़, सदाक़तों और सच्चाइयों पर मुश्तमिल दीन है। तौहुमात व खुराफ़ात, ख्याली व तसव्वुराती दुनिया से इसका कोई तआल्लुक नहीं। बदशगुनी व बदगुमानी और मुख्तलिफ चीजों की नहूसत के तसव्वुर व एतकाद की यह बिल्कुल नफ़ी करता है। इस्लाम दरअस्ल एक अकेले वाहिद और ऐसी क़ादिरे मुत्तलक ज़ात पर यक़ीन व एतक़ाद की तालीम देता है, जिसके तन्हा क़ब्ज़-ए-क़ुदरत और उसी की तन्हा ज़ात के साथ अच्छी व बुरी तक़्दीर वाबस्ता है। आदमी की अपनी तदबीरें यह महज़ असबाब के दर्जे में होती है। उनसे कुछ नहीं होता। सबका सब उस एक अकेले अल्लाह के करने से होता है। यही वह इस्लाम का बुनियादी अक़ीदा है, जिससे शिर्क व कुक्र, खुराफ़ात और ख्याली व तसव्वुराती दुनिया की बहुत सारी बद एतक़ादियों की जड़ कट जाती है। आजकल की मुश्किल और दुश्वार गुज़ार जिंदगी में ग़ैरों को तो छोडि़ए, जिनके मज़हब की बुनियाद ही खुराफ़ात पर होती है। देवमालाई कहानियां और अजीब व गरीब क़िस्से जिसका जुज लाजिम होते हैं, गैरों के साथ लम्बे अर्से तक रहन-सहन के नतीजे में खुद मुसलमानों में भी दिनों, महीनों, जगहों, चीजों और मुख्तलिफ रस्म व रिवाज की अदम अदाएगी की शक्ल में बेशुमार तौहुमात दाखिल हो गए हैं कि फलां दिन और फलां महीना मनहूस होता है, फलां रूख पर घर बनाने या सिम्त व रूख के एतबार से अच्छे या बुरे का एतकाद किया जाता है, मुख्तलिफ तक़रीबात बल्कि बच्चे की पैदाइश से लेकर उसके शादी के बंधन में बंध जाने, उसके साहबे औलाद होने, फिर उसके उम्र के आखिरी मरहलों से गुजर कर उसके मौत के मुंह में चले जाने, बल्कि उसके मरने के बाद उसके दफ़नाने बल्कि उसके बाद भी मुख्तलिफ रस्म व रिवाज का सिलसिला चलता रहता है, जिसकी अदम अदाएगी को नहूसत का बाइस क़रार दिया जाता है। इन बेजा तसव्वुरात व ख्याली तौहुमात के जरिए जानी, माली, वक्ती हर तरह की कुर्बानियां देकर अपने आप को भारी बोझ तले दबा लिया जाता है। ग़रज़ कि लोगों ने इन तौहुमात व खुराफात की शक्ल में जिंदगी के मुख्तलिफ गोशों में इस क़दर बखेड़े खड़ा कर दिए हैं कि शुमार से बाहर है। जहां हमने एक अकेले, वाहिद व तनहा और कादिरे मुत्तलक जात को हकीकी माबूद व मसजूद और उसकी बारगाह की हाजिरी और उसके सामने सर झुकाना छोड़ दिया, उसी की जात के साथ नफा-नुक्सान की वाबस्तगी के एतकाद को पसेपुश्त डाल दिया। अजीब भूल भुलैयों में गुम हो गए, मुख्तलिफ पत्थरों, मूर्तियों, रस्मों व रिवाजों, मुख्तलिफ अवकात व घडि़यों और महीनों व दिनों से अपनी तक़दीर वाबस्ता कर बैठे और अपनी मुनफअत को उनसे मंसूब कर दिया। एक अकेले अल्लाह को राजी करना कितना आसान था। इससे बढ़कर बेजुबान, बेअक्ल जानवर, कुत्ते, बिल्लियों, तोतों, उल्लुओं और कौओं तक से अपने नफा-नुक्सान का एतकाद, यह किस क़दर नादानी और बचकानी और गई गुजरी हुई हरकत हो सकती है। अगर हम एक अकेले अल्लाह को हकीकी नफा-नुक्सान पहुंचाने वाला समझ कर उससे अपनी तक़दीर का बनना व बिगड़ना वाबस्ता करते और उसी तनहा जात को अपनी मुकद्दस पेशानी के झुकाने के लिए चुन लेते, तो आज का यह इंसान इस क़दर हैरान व परेशान ना होता कि हर छोटी बड़ी चीज़ के सामने सर झुकाने से बच जाता। जाहिलियत के जमाने की बदशगुनियां:- जाहिलियत के जमाने में भी इस्लाम की आमद से पहले लोगों में मुख्तलिफ चीजों से शगुन लेने का रिवाज था। एक तरीका यह था कि खाना-ए-काबा में तीर रखे हुए होते, जिनमें से कुछ पर ''ला'' लिखा होता यानी यह काम करना दुरूस्त नहीं और बाज में 'नअम' लिखा होता यानी यह काम करना दुरूस्त है। वह उससे फाल निकालते और उसी के मुताबिक़ अमल करते या जब किसी काम से निकलना होता, तो पेड़ पर बैठे हुए किसी परिंदे को उड़ा कर देखते कि यह जानवर किस सिम्त उड़ा। अगर दांए जानिब को उड़ गया, तो उसे मुबारक और सअद जानते थे कि जिस काम के लिए हम निकले हैं, वह काम हो जाएगा और अगर बाएं जानिब को उड़ गया, तो उसको मनहूस और नामुबारक समझते। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इन सब चीजों की नफी फरमा दी और फरमाया कि ''परिंदो को अपनी जगह बैठे रहने दो, उनको बिला वजह उड़ाकर फाल ना लो।'' (अबू दाऊद) इस हदीस में नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुख्तलिफ बदएतकाद और जाहिलियत के जमाने के मुख्तलिफ तौहुमात और बदशगुनियों को रद्द फरमा दिया है। जाहिलियत के जमाने का एक तसव्वुर यह भी था कि बीमारियां एक दूसरे को मतादी होती है। एक दूसरे को मुंतकिल होती है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस बद एतकाद की नफी करते हुए फरमाया कि तादिया कोई चीज नहीं है, इस तादिया के मुतअल्लिक़ एक देहाती ने जब आप से यह दरयाफ्त किया कि या रसूलल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)! ऊंट रेतीले इलाकों में बिल्कुल हिरनों की तरह तेज़ व तर्रार होते हैं कि कोई बीमारी उन्हें नहीं होती, उनमें एक खारिश जदा ऊंट आकर घुल मिल जाता है, वह सब को खारिशज़दा कर देता है (यह तो तादिया हुआ) इस पर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः- पहले ऊंट को खारिश कहां से हुई? यानी जब पहले ऊंट की खारिश अल्लाह की तरफ से है, तो इन तमाम का खारिशज़दा होना भी उसी की जानिब से है। (बुखारी) उल्लू भी कोई चीज नहीं:- अहले अरब का एक अकीदा यह भी था कि मुरदार की हड्डियां जब बिल्कुल बोसीदा और रेज़ा रेज़ा हो जाती हैं, तो वह उल्लू की शक्ल अख्तियार करके बाहर निकल आती हैं और जब तक कातिल से बदला नहीं लिया जाता, उसके घर पर उसकी आमद व रफ्त बरकरार रहती है। जाहिलियत के ज़माने की तरह मौजूदा दौर में भी उल्लू को मनहूस तसव्वुर किया जाता है। उसके घर पर बैठने को मुसीबत की आमद का एलान तसव्वुर किया जाता है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इन तमाम एतकादात और तौहुमात का इंकार कर दिया। अहले अरब का यह अकीदा था कि वह बारिश को चांद के मुख्तलिफ बुर्ज या मनाजिल के साथ मंसूब करते थे कि चांद के फलां बुर्ज या मंजिल में होने से बारिश होती है या फलां सितारे के निकलने या डूबने से बारिश होती है यानी वह बारिश की निस्बत बजाए अल्लाह के इन सितारों की जानिब कर देते। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसका इंकार फरमा दिया। (अबू दाऊद) और एक रिवायत में है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हुदैबिया के मौके पर एक बार फजिर की नमाज पढ़ाई। फजिर से पहले बारिश हो चुकी थी। जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) नमाज से फारिग हुए तो लोगों की जानिब मुतवज्जो हुए और फरमाया क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे रब ने क्या फरमाया, तो लोगो ने कहा अल्लाह और उसके रसूल ज्यादा जानते हैं। फरमाया कि अल्लाह तआला ने फरमाया- मेरे बंदो में से कुछ ने तो ईमान की हालत में सुबह की और कुछ ने कुफ्र व शिर्क की हालत में सुबह की। जिन्होंने यह कहा कि अल्लाह के फजल व रहमत से बारिश हुई, तो उन्होंने मुझ पर ईमान लाया और सितारों का उन्होंने इंकार किया और जिन्होंने यह कहा कि फलां सितारे के फलां बुर्ज में होने से बारिश हुई, तो उसने मेरा इंकार किया और सितारों के साथ अपना ईमान वाबस्ता किया। (मुस्लिम) सितारों और सैयारों की गर्दिश और उनका तुलूअ व गुरूब होना बारिश होने या न होने का एक जाहिरी सबब तो हो सकते हैं लेकिन

     

    Blogtrottr <busybee@blogtrottr.com> May 27 03:44AM +0100  

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    ردا على اغنية بشرة خير
     
    دي نصبة كبيرة وهتلبسها .. قصاد الدنيا هتاكلها!
    وطب إي...
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    May 27th 2014, 02:33
     
    ‫ردا على اغنية بشرة خير

    دي نصبة كبيرة وهتلبسها .. قصاد الدنيا هتاكلها!
    وطب إيه يعني متاكلها .. لبست كتييييييييييييييير

    خدت إيه مصر من صوتك .. متستخسرش فيها قوتك!!
    كلابهم بكرة هتدوسك .. دة سحر كبيييييييييييير

    صدق لميس الحديدي وانزل مع العَبيدي
    وبكار ويا برهامي أصل دول شلة أندال

    روح نادي عالسوهاجي روح قوله اني مش هاجي
    مش رايح المسرحية أنا مالي بلعب العيال

    متوصيش المنايفة الدنيا بايظة كدة كدة
    دة الربعاوية مش هيسيبوهالكم كدة!!

    كلمني عالشراقوة .. دول في المقاطعة أقوى
    وهنهزمهم على سهوة .. دة شبابنا خطير

    هيركبوك دة لو هتطاطي .. كفاية كفتة عبد العاطي
    وياما هتشوفوا مصايب وآلام وجروح

    وأحسن حاجة في الجيزة .. نفوسهم طاهرة وعزيزة
    مظاهرة كبيرة ولذيذة دي أجمل رووووح

    روح نادي عالحرامي وابن أخوك الانقلابي
    والبلطجي والضلالي والرقاصة والطبال

    متوصيش للمنايفة الدنيا بايظة كدة كدة
    دة الربعاوية مش هيسيبوهالكم كدة!!

    كلمني عالشراقوة .. دول في المقاطعة أقوى
    وهنهزمهم على سهوة .. دة شبابنا خطير!! 31

    مصر-اسلامية‬
     
     
     
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    بيسألوا واحدة ايه رأيك فى الانتخابات ؟
     
    قالت لهم أحلى انتخابات
     
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    May 27th 2014, 02:39
     
    ‫بيسألوا واحدة ايه رأيك فى الانتخابات ؟

    قالت لهم أحلى انتخابات

    طيب ياحجة ايه اللي مختلف عن انتخابات الاخوان ؟

    قالت لهم مفيش زحمة زي ماكان أيام الاخوان الارهابيين



    هااااااااااااااااااااااااانت 31

    مصر-اسلامية‬
     
     
     
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    May 27th 2014, 02:05
     
    ‫بكاء وانهيار عمرو اديب السعودية والامارات مش هيدونا فلوس تاني لو السيسي اتفضح ف الانتخابات

    قولت حاجة انا من عندى 16

    مصر_اسلامية‬
     
     
     
     
     
     
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    ان شاء الله مش هنسمع سباك ورا المنصه .. ولا هنسمع اسعاف عند المنصه ...
     
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    May 27th 2014, 02:41
     
    ‫ان شاء الله مش هنسمع سباك ورا المنصه .. ولا هنسمع اسعاف عند المنصه ...

    قريبا هنسمع .....

    شرباااااااااااااااااات عند المنصه

    هننتصر_بإذن_الله 31

    مصر-اسلامية‬
     
     
     
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    بمقاطعة شعبنا الطاهر الأبي لإنتخابات( الدياسه ) ستسمعون عن الطائرات التي غادرت م...
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    May 27th 2014, 02:37
     
    ‫بمقاطعة شعبنا الطاهر الأبي لإنتخابات( الدياسه ) ستسمعون عن الطائرات التي غادرت مصر قريبا وعلي رأسها إعلاميين ورجال اعمال من بلطجية مبارك ..
    وتتدلي الحبال قريبا في ميادين مصر للخونه والقتله المجرمين ..

    ونحن علي موعد ..

    سننتصر_بإذن_الله 31

    مصر-اسلامية‬
     
     
     
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    Déjà vu in #Egypt | 27 May 2014
    As pres­i­den­tial elec­tions take place in Egyp...
    http://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=661941087189086&id=182369315146268
    May 27th 2014, 01:52
     
    Déjà vu in #Egypt | 27 May 2014
    As pres­i­den­tial elec­tions take place in Egypt, there can be lit­tle doubt over for­mer Egypt­ian mil­i­tary chief Field Mar­shal Abdel Fat­tah al-Sisi's electoral vic­tory. The Egypt­ian mil­i­tary and the US is count­ing on al-Sisi's pres­i­dency to bring polit­i­cal sta­bil­ity to the coun­try, and through this sta­bil­ity, pre­serve the military's priv­i­leged posi­tion and US inter­ests in the region. How­ever, al-Sisi faces numer­ous chal­lenges, even more than his predecessors.

    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=677989875570725&id=418282864874762
     
     
    Déjà vu in Egypt – Revolution Observer
    www.revolutionobserver.com
    Déjà vu in EgyptMay 27, 2014Leave a CommentBy Adnan KhanAs pres­i­den­tial elec­tions take place in Egypt the country's mil­i­tary and the US admin­is­tra­tion are count­ing on sta­bil­ity to return back to the most pop­u­lous and polit­i­cally the most impor­tant coun­try in the Mid­dle East. There…
     
     
     
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    Blogtrottr <busybee@blogtrottr.com> May 27 02:49AM +0100  

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    Allah – Erhaben sei Er – sagt im Koran:
    „ Und dein Herr hat befohlen: "Verehrt k...
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    May 27th 2014, 00:59
     
    Allah – Erhaben sei Er – sagt im Koran:
    „ Und dein Herr hat befohlen: "Verehrt keinen außer Ihm, und (erweist) den Eltern Güte. Wenn ein Elternteil oder beide bei dir ein hohes Alter erreichen, so sage dann nicht „Pfui" zu ihnen und fahre sie nicht an, sondern sprich zu ihnen in ehrerbietiger Weise. Und senke für sie in Barmherzigkeit den Flügel der Demut und sprich: „Mein Herr, erbarme dich ihrer (ebenso mitleidig), wie sie mich als Kleines aufgezogen haben!" [17/23-24]

    "وَقَضَى رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُلْ لَهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُلْ لَهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا. وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُلْ رَبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا" (الإسراء 23-24)

    Ad-Daylami berichtet von Al-Husayn ibn Ali, dass der Prophet (sas) sagte: "Wenn Allah etwas Kleineres als „Uff" als Respektlosigkeit gegenüber den Eltern gekannt hätte, hätte Er es als Haram verordnet." Ein Mann kam zum Propheten (sas), um die Erlaubnis für den Jihad zu erbitten. Der Prophet (sas) fragte ihn: „Sind deine Eltern am Leben?" Er sagte: „Ja." Er – Sal Allahu alayhi wa Sallam – sagte: „Erfülle Jihad (durch liebevolle Behandlung) an ihnen." [Bukhari]

    Mu'aawiyah ibn Jaahimah As-Sulamee erzählte: Mein Vater, Jaahimah (ra) ging zum Propheten (sas) und fragte: "Oh Gesandter Allahs, ich möchte gerne kämpfen für Allahs Wohlgefallen und ich komme, um nach deinem Rat zu fragen. Der Prophet (sas) fragte ihn: "Ist deine Mutter am Leben?" Er sagte: "Ja." Der Prophet (sas) riet ihm darauf: "Dann bleib in ihrer Nähe, da bei ihren Füßen das Paradies ist." [Ahmad und An-Nasaa'ee]

    Zur'ah bin Ibrahim berichtete: Ein Mann kam zu 'Umar Ibn al-Khattab und sagte zu ihm: „Ich habe eine alte Mutter, die nicht in der Lage ist fortzugehen, um ihre Notdurft zu verrichten, so trage ich sie auf meinem Rücken. Ich helfe ihr ebenfalls die Waschung zu vollziehen, während ich mein Gesicht von ihr abwende (aus Respekt). Habe ich meine Pflicht ihr gegenüber erfüllt?"
    'Umar sagte: „Nein."
    Der Mann sagte: „Selbst wenn ich sie auf meinem Rücken trage und mich selbst ihr zu Diensten anbiete?"
    'Umar sagte: „Sie pflegte das Selbe für dich zu tun als du jung warst, während sie hoffte, dass du leben wirst. Was dich betrifft, du wartest darauf wann sie gehen (sterben) wird."
     
     
     
     
     
     
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    Hafsa, Allahs Wohlgefallen auf ihr, berichtete,
    dass der Gesandte Allahs, Allah...
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    May 26th 2014, 13:07
     
    Hafsa, Allahs Wohlgefallen auf ihr, berichtete,
    dass der Gesandte Allahs, Allahs Segen und Friede auf ihm, :
    - wenn der Mu`aththin mit dem Ruf zum Morgengebet aufhörte und die Zeit dieses Gebets fällig wurde - zwei kurze Rak`a zu verrichten pflegte, bevor das Pflichtgebet begann.

    [Sahih Al-Bucharyy Nr. 593]
     
     
     
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